चन्द्रशेखराष्टकस्तोत्रम् ।
चंद्रशेखर अष्टकम चंद्रशेखर के रूप में भगवान शिव की स्तुति करने के लिए एक दिव्य भजन है, जो भगवान अपने सिर पर चंद्रमा से सुशोभित हैं।
चंद्रशेखर अष्टकम के गीत और अर्थ में भगवान शिव की महानता, उनके स्वरूप, उनके भक्तों को दी जाने वाली सुरक्षा, साथ ही भगवान के दिव्य गुणों की गहन व्याख्या है।
चंद्रशेखर अष्टकम ऋषि मार्कंडेय द्वारा लिखा गया था, जो एक प्राचीन हिंदू ऋषि थे, जिन्हें चंद्रशेखर या भगवान शिव ने 16 साल की उम्र में मृत्यु के देवता (काल या यम) से बचाया था और उन्हें हमेशा के लिए 16 साल का होने का आशीर्वाद दिया था। ऐसा माना जाता है कि ऋषि मार्कंडेय ने इस सुंदर संस्कृत स्तोत्र को तब गाया था जब चंद्र शेखर (भगवान शिव) ने ऋषि को मृत्यु से बचाया था।
चंद्रशेखर अष्टकम जप के लाभ - जो लोग चंद्रशेखर अष्टकम का प्रतिदिन या प्रत्येक सोमवार को जप करते हैं उन्हें मृत्यु का कोई भय नहीं होगा और पूर्ण स्वस्थ जीवन होगा और भगवान चंद्रशेखर के आशीर्वाद से सभी धन प्राप्त करेंगे और अंत में मोक्ष प्राप्त करेंगे। जो भक्त इस दिव्य स्तोत्र का पाठ करते हैं, वे भी अपने दुखों और कष्टों से मुक्त हो जाते हैं और उन्हें भगवान शिव की कृपा से सौभाग्य प्राप्त होता है।
|| चन्द्रशेखराष्टकं ||
चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर, चन्द्रशेखर पाहि माम् ।
चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर, चन्द्रशेखर रक्ष माम् ॥१॥
रत्नसानुशरासनं रजताद्रिशृङ्गनिकेतनं
सिञ्जिनीकृतपन्नगेश्वरमच्युताननसायकम् ।
क्षिप्रदग्धपुरत्रयं त्रिदिवालयैरभिवन्दितं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥२॥
पञ्चपादपपुष्पगन्धपदांबुजद्वयशोभितं
भाललोचनजातपावकदग्धमन्मथविग्रहम् ।
भस्मदिग्धकलेबरं भव नाशनं भवमव्ययं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥३॥
मत्तवारणमुख्यचर्मकॄतोत्तरीयमनोहरं
पङ्कजासनपद्मलोचनपूजितांघ्रिसरोरुहम् ।
देवसिन्धुतरङ्गसीकर सिक्तशुभ्रजटाधरं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥४॥
यक्षराजसखं भगाक्षहरं भुजङ्गविभूषणं
शैलराजसुतापरिष्कृतचारुवामकलेबरम् ।
क्ष्वेडनीलगलं परश्वधधारिणं मृगधारिणं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥५॥
कुण्डलीकृतकुण्डलेश्वर कुण्डलं वृषवाहनं
नारदादिमुनीश्वरस्तुतवैभवं भुवनेश्वरम् ।
अन्धकान्तकमाश्रितामरपादपं शमनान्तकं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥६॥
भेषजं भवरोगिणामखिलापदामपहारिणं
दक्षयज्ञविनाशनं त्रिगुणात्मकं त्रिविलोचनम् ।
भुक्तिमुक्तिफलप्रदं सकलाघसंघनिबर्हणं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥७॥
भक्तवत्सलमर्चितं निधिक्षयं हरिदंबरं
सर्वभूतपतिं परात्परमप्रमेयमनुत्तमम् ।
सोमवारिदभूहुताशनसोमपानिलखाकृतिं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥८॥
विश्वसृष्टिविधायिनं पुनरेव पालनतत्परं
संहरन्तमपि प्रपञ्चमशेषलोकनिवासिनम् ।
कीडयन्तमहर्निशं गणनाथयूथसमन्वितं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥९॥
मृत्युभीतमृकण्डुसूनुकृतस्तवं शिवसन्निधौ
यत्र कुत्र च यः पठेन्न हि तस्य मृत्युभयं भवेत् ।
पूर्णमायुररोगतामखिलार्थसंपदमादरात्
चन्द्रशेखर एव तस्य ददाति मुक्तिमयत्नतः ॥१०॥
इति श्रीचन्द्रशेखराष्टकस्तोत्रं संपूर्णम् ॥
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