Sunday, January 1, 2023

Sri Mahalakshmi Ashtakam lyrics in hindi devanagari - महालक्ष्म्यष्टकम्

महालक्ष्म्यष्टकम्

Learn to read Mahalakshmi Ashtakam:

इन्द्र उवाच ।

नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते ।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ १॥
(इन्द्र बोले – श्रीपीठपर स्थित और देवताओंसे पूजित होनेवाली हे महामाये। तुम्हें नमस्कार है। हाथमें शङ्ख, चक्र और गदा धारण करनेवाली हे महालक्ष्मि ! तुम्हें प्रणाम है | ) 

नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयङ्करि ।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ २॥
(गरुड़पर आरूढ़ हो कोलासुरको भय देनेवाली और समस्त पापोंको हरनेवाली हे भगवति महालक्ष्मि! 
तुम्हें प्रणाम है | )

सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयङ्करि ।
सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ ३॥
(सब कुछ जाननेवाली, सबको वर देनेवाली, समस्त दुष्टोंको भय देनेवाली और सबके दुःखोंको दूर करनेवाली, हे देवि महालक्ष्मि! तुम्हें है | )

सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि ।
मन्त्रमूर्ते सदा देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ ४॥
(सिद्धि, बुद्धि, भोग और मोक्ष देनेवाली हे मन्त्रपूत भगवति महालक्ष्मि ! तुम्हें सदा प्रणाम है |)

आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि ।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ ५॥
(हे देवि ! हे आदि-अन्त-रहित आदिशक्ते! हे महेश्वरि ! हे योगसे प्रकट हुई भगवति महालक्ष्मि ! तुम्हें नमस्कार है | )

स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्ति महोदरे ।
महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ ६॥
(हे देवि ! तुम स्थूल, सूक्ष्म एवं महारौद्ररूपिणी हो, महाशक्ति हो, महोदरा हो और बड़े-बड़े पापोंका नाश करनेवाली हो। हे देवि महालक्ष्मि ! तुम्हें नमस्कार है | )

पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि ।
परमेशि जगन्माता महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ ७॥
(हे कमलके आसनपर विराजमान परब्रह्मस्वरूपिणी देवि ! हे परमेश्वरि ! हे जगदम्ब ! हे महालक्ष्मि ! तुम्हें मेरा प्रणाम है | )

श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते ।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ ८॥
(हे देवि तुम श्वेत वस्त्र धारण करनेवाली और नाना प्रकारके आभूषणोंसे विभूषिता हो। सम्पूर्ण जगत्‌में व्याप्त एवं अखिल लोकको जन्म देनेवाली हो। हे महालक्ष्मि ! तुम्हें मेरा प्रणाम है | )

फलश्रुति ।

महालक्ष्म्यष्टकस्तोत्रं यः पठेद्भक्तिमान्नरः ।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा ॥
(जो मनुष्य भक्तियुक्त होकर इस महालक्ष्म्यष्टक स्तोत्रका सदा पाठ करता है, वह सारी सिद्धियों और राज्यवैभवको प्राप्त कर सकता है | )

एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम् ।
द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वितः ॥
(जो प्रतिदिन एक समय पाठ करता है, उसके बड़े-बड़े पापोंका नाश हो जाता है। जो दो समय पाठ करता है, वह धन-धान्यसे सम्पन्न होता है|)

त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम् ।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्न वरदा शुभा ॥
(जो प्रतिदिन तीन काल पाठ करता है उसके महान् शत्रुओंका नाश हो जाता है और उसके ऊपर कल्याणकारिणी वरदायिनी महालक्ष्मी सदा ही प्रसन्न होती हैं । )

॥ इतीन्द्रकृतं महालक्ष्म्यष्टकं सम्पूर्णम् ॥

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